!-- LOAD CSS -->

prachin kalin bhavan or mahttv

 prachin kalin bhavan  or mahttv, प्राचीन कालीन भवन एवं महत्त्व 

prachin kalin bhavan  or mahttv,


प्राचीन vastu कला से सबंधित  भारत  के ग्रंथो में  अनेक प्रकार के  भवनों का उल्लेख  मिलता  है  इनमे vastu शिल्प  की उत्कृष्टता के दर्शन होते है 
इन भवनों के आकार -प्रकार  में वास्तु विज्ञानं  के सूक्ष्म तम निर्देशों का  भी ध्यान  रखा गया है  निम्न ग्रंथो  में अनेक प्रकार  के भवनों का विवरण  प्राप्त होते है 
 1 . वृहत सहिता में 20 प्रकार के भवनों का विवरण दिया गया है   2. अत्रि सहिता में 35 प्रकार के भवनों  का विवरण  दिया गया है  3.नारद सहिता में 96 प्रकार के भवनों का विवरण दिया  गया है  4.मानसर के 98 प्रकार का विवरण दिया गया है   5.अग्नि पुराण में 45 प्रकार के भवनों का विवरण दिया गया है  
 इसी प्रकार  पुराणों और सहिताओ में  भी अनेक प्रकार के  भवनों का उल्लेख मिलता है |भवन निर्माण कला की दृष्टी से ये भारतीय vastu शिल्प की प्राचीन गौरवमय  स्थिति  की और सकेत करते है और उन व्यक्तियों के लिए एक चुनोती है  जो भारतीय शास्त्रों को अंधविश्वासियो और जंगली लोगो की मान्यता कहकर उसका मजाक उड़ाते रहे है 
 आधुनिक युग में पृथ्वी ,नक्षत्र ,सूर्य चंद्रमा  आदि के प्रभाव ,दिशाओ एवं भूमि की चुम्बकीय -विधुतीय  तरंगो की गणना करके  प्रत्येक दृष्टि से  उत्तम एक दर्शनीय  भवनों का निर्माण इस महंगाई के दोर में संभव नहीं है  चुकी इन भवनों के लिए एक विशाल भूखंड  तथा अपार  धन की आवश्यकता होती है  अत: इस  युग में इस तरह के भवन का निर्माण करना लोहे के चने चबाने के बराबर है 
|परन्तु इस प्राचीन शिल्प के बार में थोड़ी सी  जानकारी कर लेना  आवश्यक है  प्राचीन भवनों के सबंध में वराहमिहिर {वृहत सहिता} के विवरण अधिक उपयुक्त मने गये है क्योकि इनमे केवल 20 वर्ग भेदों के अंतर्गत ही सभी ऋषियोंके भवन विवरण को समाहित किया गया है  अत: यह सिर्फ वृहत सहिता के ही 20 प्रकार के भवनों का विवरण दिया गया है  तो जानते है 

  [1] वृत प्रासाद-वृत अर्थात वृताकार भवन : -

 यह भवन अनेक खिड़कियों और दरवाजो के युक्त  तथा एक या दो बड़े दरवाजा  वाला होता है  जो की सार्वजानिक ही बनाया जा  सकते है  या सरकारी कार्यो के लिए इनका उपयोग होता है  जैसे पाटलिपुत्र का गोलधर वृताकार भवन का एक उदाहरन है या दिल्ली का पुराना ससंद भवन  भी इसका एक अनोखा उदाहरन समजा जा सकता है ऐसे भवन आवासीय नहीं होता है 

[ 2 ] अष्टादी प्रासाद यानि आठ कोनो वाला  भवन -

 इस प्रकार के भवन में आठ  कोण आठ शिखर  कई द्वार अपने क्षेत्र फल से दो गुना क्षेत्र फल  की भूमि पर निर्मित किया जाता है  यह भवन भी आवासीय नहीं होता है इसमें भी राजकीय  या सार्वजानिक भंडार गृह आदि बनाये जाते है

[ 3 ]षोडशाश्री प्रासाद यानि सोलह कोना वाला भवन :-

इस प्रकार  वाले भवन में सोलह कोण सोलह शिखर तथा अनेक द्वार होते है यह भवन भी अपने क्षेत्रफल से से दो गुनी क्षेत्रफल की  भूमि पर निर्मित किया जाता है यह आवाहमी पर  नहीं होता है इसका उपयोग भी या तो सभागार या चौपाल के लिए किय जाता है 

[4 ] चतुष्कोण प्रासाद यानि चार कोना वाला :- 

इस प्रकार के भवन में चारो दिशाओ में द्वार चार शिखर इनकी छत गोलाकार और  ये भवन भी अपने क्षेत्र फल से दो गुना अधिक क्षेत्र फल में निर्मित किया जा ता है ये भवन भी आवासीय नहीं होते है ये भी युक भवन की  भाति उपयोग किया जाता है 

[ 5 ] मंदर प्रासाद  यानि मंदिर की भांति भवन:

मंदिर के गुम्बदो की भांति  शिखरों से युक्त ,छ: कोण अनेक प्रकार की खिडकिया एवं झरोखा से युक्त अपने क्षेत्रफल से 11 गुना क्षेत्रफल की  भूमि पर निर्मित  ये मंदिर  ही कहलाते है इन भवनों में पूजा या भजन  का गान  ही होता है आवास हेतु इन भवनों में केवल चोकीदार या उससे सम्बधितव्यक्ति ही वास करते है  निर्मित भवन का क्षेत्रफल 60हाथ चोड़ाई और 60 हाथ लम्बाई होती है  

[ 6 ] नन्दन प्रासाद :

छ: कोण अनेक द्वार एवं खिडकियों तथा झरोखा से युक्त  होते है इनका निर्मित  भवन का क्षेत्रफल  64 हाथ  चौड़ा व् 64 हाथ लम्बा होता है

[ 7 ] मेरु प्रासाद : 

 छ: कोण  चारो दिशाओ में द्वार  कदमो में दिशात्मक  गुणवत्ता के आधार पर  अनेक खिडकिया झरोखे  छत्र मंडप  आदि से युक्त होता है अपने क्षेत्रफल से  के तेरह गुना भूमि पर निर्मित  होता है ये 64 हाथ लम्बा व् 64 हाथ चौड़ा  होता है 

[8] समुद्र प्रासाद 

सिहाकृति अनेक खिडकियों द्वारो से युक्त श्रंगार कार  होते है इनको गोलाकार आकृति में निर्मित किया जाता है  ये अपने क्षेत्रफल से तीन गुने क्षेत्रफल की भूमि में निर्मित होते है इनका निर्मित क्षेत्रफल 64 हाथ व्यास का होता है 

[ 9 ]कैलाश प्रासाद 

अनेक शिखरों वाला खिडकिया  व् झरोखा से युक्त 6 कोण वाले होते है अपने क्षेत्रफल से 9 गुना अधिक क्षेत्रफल में निर्मित किया जाता है इनका निर्मित क्षेत्रफल 56 हाथ लम्बा व् 56 हाथ चौड़ा होता है 

[ 10 ]विमान प्रासाद  

द्वारो खिडकियों तथा झरोखों से युक्त होता है  इसमें छ; कोण होते है क्षेत्रफल के 9 गुने क्षेत्रफल पर निर्मित  होता है इसका निर्मित क्षेत्रफल 42 हाथ लम्बा व् 42 हाथ चौड़ा होता है 

[ 11 ] पदम् प्रासाद : 

कमल की आकृति वाला  गोलाकार  शीर्ष पर कमल के पंखुडियो की आकृति  का शिल्प खिडकियों एवं झरोखों से युक्त होता है  यह अपने क्षेत्रफल से दो गुना अधिक क्षेत्रफल में निर्मित किया जाता है इस भवन का विस्तार इच्छानुसार रख सकते है 

[ 12 ] घट प्रासाद :

कलश की आकृति तथा एक शिखर वाला यह भवन अपने क्षेत्रफल के दो गुनी क्षेत्रफल  की भूमि में निर्मित  होता है  16 हाथ लंबा 16 हाथ चौड़ा  रखा जाता है  

{ 13 } सर्व तो भद्र  प्रासाद 

चारो दिशो में द्वार अनेक शिखर  अनेक चन्द्र शालाये चार कोण वाला यह भवन इसका निर्माण ५२ हाथ चौड़ा व् ५२ हाथ लम्बा होता है

[14] गरुड प्रासाद  

जैसा की नाम  से ही प्रकट  है  गरुड़ की आकृति का यह भवन अनेक खिडकियों द्वारो  चौबीस शिखरों का होता है यह अपने क्षेत्रफल से आठ गुना अधिक भूमि पर निर्मित किया जाता है  इसका निर्मित क्षेत्रफल ४८ हाथ लम्बा ४८ हाथ चौड़ा होता है  

[ 15 ]  नन्दी वर्दन प्रासाद 

यह भी गरुड प्रासाद का एक रूप माना जाता है  इसमें पंख व् पूछ की आकृति नहीं होती है 

 [16 ] सिह प्रासाद 

 सिह की आकृति  द्वार पर राखी जाती है  यह अपने क्षेत्रफल के पाच गुना अधिक क्षेत्रफल पर बनाया जाता है  इसका अपना क्षेत्रफल 16 हाथ लम्बा 16 हाथ  चौड़ा होता है  

[17] हंस प्रासाद 

हंस की आकृति वाला  तथा एक शिखर वाला  यह भवन अपने क्षेत्र फल से दो गुने क्षेत्रफल पर निर्मित किया जाता है  इस्कापना क्षेत्रफल 24 हाथ लम्बा 24 हाथ चौड़ा होता है 

[ 18] कुंजर प्रासाद:

 हाथी की पीठ  की भांति  तीन चन्द्र शालाओ  अनेक खिडकियों  से यूक्त यह भवन अपने क्षेत्रफल से चार गुनी भूमि पर निर्मित  होता है इसका निर्मित क्षेत्रफल 32 हाथ लम्बा 32 हाथ चौड़ा होता है 

[19 ] वृष प्रासाद भवन :-  

वृषा कर एक शिखर  वाला अपने क्षेत्र फल से दोगुनी  क्षेत्रफल  की भूमि पर निर्मित होता है  इसका निर्मित क्षेत्रफल 24 हाथ लम्बा 24 हाथ चौड़ा होता है 

[ 20 ] मुहराज प्रासाद 

 मुह की आकृति वाला  तीन चन्द्र शालाओ वाला  यह अपने क्षेत्रफल से चार गुना अधिक क्षेत्रफल पर निर्मित  होता है  इसका निर्माण क्षेत्र फल 32 हाथ लम्बा 32 हाथ चौड़ा होता है  इसके अलावा निर्माण सामग्री  1 मिटटी  2 लकड़ी  3  पत्थर   4 ईट   इसके अलावा प्राचीन कल के भवन में उपयोग में ली जाने वाली सामग्री की डिटेल आपको ओर किसी पोस्ट मे जल्दी ही बताएँगे 

disclaimer-यह जानकारी विभिन्न  स्रोत से संयोजित की गई है जैसे पुराण कथा कहानी से इकट्ठी करके आप तक पहुंचाई गई है इसलिए सत्यता की पुष्टि home basic नहीं करता है 
Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.