vastu purush vichar, वास्तु पुरुष विचार
कहा जाता है की त्रेता युग में एक महाभूत हुआ जिसने अपने सुप्त शरीर से समस्त भुवन को आच्छादित कर लिया | उसे देखकर इन्द्र और सभी देवता भयभीत होकर ब्रहमाजी के पास गये
और उनसे बोले प्रभु हम सब महाभूत से भयभीत है |आप बताये हम सब कहा जाये उनकी बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा हे देवगन | भय मत करो , इस महाबली को महाभूत को पकड़कर भूमि पर अधोमुख [मुंह के बल] गिरा दो और निर्भय हो जाओ ब्रह्माजी के कहने पर सभी देवताओ ने उस प्राणी को पकड़ा तथा अधोमुख करके जमीन पर गिरा दिया
ब्रहमाजी ने इस महाभूत को वास्तुपुरुष की संज्ञा दी एक दिन भाद्रपद माह को कृष्णपक्ष तृतीया तिथि दिन शनिवार कृतिका नक्षत्र व्यतिपात योग व् विष्टि करण व् कुलिक मुहर्त में जन्मा महाभूत रूपी वास्तु पुरुष भयंकर शब्द करता हुआ ब्रह्माजी के पास पंहुचा और बोला हे प्रभु आपने इस सम्पूर्ण चराचर जगत की रचना की है पर मुझ निरपराध को देवतागण अत्यंत पीड़ा देते है
मेरा भी सोचे | उसकी यह बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा - जो ग्राम ,नगर ,दुर्ग,शहर ,भवन,जलाशय धारा एवं कोई भी निर्माण करने के पहले अगर तुम्हारी पूजा नहीं करेगा वह दरिद्र और मृत्यु को प्राप्त | अनेक बाधाओं को सामना करना पड़ेगा और तुम्हारा आहार होगा ऐसा कहकर ब्रह्माजी अन्तर्ध्यान होगये | वास्तुपुरुष को देवताओ ने अधोमुख रूप में गिराया था उसका सर इसान कोण में एवं पर नेरुत कोण में थे वास्तुपुरुष भूमि पर शयन करते है और सदेव भूमि में वास करते है अधोमुख वास्तुपुरुष के शरीर में देवो का स्थापन किया | पूजा के समय वास्तुपुरुष का ध्यान करना आवश्यक है
vastu पुरुष का महत्व - वास्तुपुरुष का महत्त्व भवन निर्माण करते समय भूखंड पर निर्माण योजना से है | वह वास्तुकला की मूल परम्परा है वास्तुपुरुष एक है उसे भवन निर्माण बनाते समय विभिन्न प्रकार से परिकल्पित किया जाता है वास्तुपुरुष का विभाजनन चाहिए भवन विशेष की योजना के अनुसार परिकल्पित किया जाता है वास्तुपुरुष की कल्पना करने पर पुरुष अंगो की कल्पना सवत हो जाता है जिस प्रकार मानव शरीर में विभिन्न अवयवो में मूर्धा शीर्ष मुख ,कमर जानू पाद शिरा अनुशिरा केश नाडी आदि होती है उसी प्रकार वास्तुपुरुषमें इनकी परिकल्पना होती है वास्तुपुरुष के किस अंग पर कोनसा निर्माण हो जैसे मर्म अवयवो पर कोई निवेश उचित नहीं है अत: वह त्याज्य है इसलिए निर्माण करते समय यह स्थान खुला रखा जाता है भूखंड में कोनसा भाग किस देवता विशेष के पद पर विन्यास है यह सब ज्ञान vastu विन्यास में किया जाता vastu चक्र में समस्त देवता सूर्य -रश्मि जाल की पारिभाषिक संज्ञाए जिन्हें भवन निर्माण में दिक् -सामुख्य के अनुकूल प्रतिष्ठित किया जाता|
पद देवता विन्यास - जिस भूखंड में भवन निर्माण करना होता उसे 81 या 64 भागो में विभाजित किया जाता है और फिर भवन -निर्माण हेतु पद देवता विन्यास किया जाता है पद विन्यास के अनुरूप ही शिल्पी भवन निर्माण की योजना की युक्तिया बनाते है गृह कर्म में 81 एवं मंदिर राजमहल संबधित कार्य में 64 कोष्ठात्मक vastu मं डल का निर्माण एवं पूजा का विधान है vastu पुरुष के मस्तक पर ब्रह्मा कानो में पर्जन्य और दिति गले में जल कंधो पर जय और अदिति स्तनों पर अर्यमा -भूधर ह्दय में आपवत्स इन्द्रादि पंचदेवता दक्षिण बाहू में नागादी वाम बाहू में सवित्र सविता दोनों दक्षिण हाथ में है रुद्रादि दो देव वाम हाथ में है मेत्रऊरूमें ब्रह्मा नाभि में तथा पृष्ठ में इन्द्र और लिंग में जय दोनों जानू में अग्नि रोग पूषा और नन्दिगनादी सैट देवता गुल्फो में और पितृ गन पेरो में है ईशान कोण में आप आपवत्स अग्निकोण में सवित्र -सविता नेरुत कोण में इन्द्र इन्द्रराज वायव्य कोण में रूद्र पाप यक्ष्म और मध्य के नो पदों को ब्रह्मा का स्थान माना गया ब्रह्मा के उत्तर में तीन पदों में महीधर [पृथ्वी धर] दक्षिण के तीन पदों में विव स्वानु पच्शिम के तीन पदों में अर्यमा नामक देवता स्थापित किया जाता है इस पद विन्यास के आधार पर ही शिल्पी भवन निर्माण की योजना करते है
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vastu देवता स्थान |
वास्तु पूजा का स्थान वास्तुशास्त्र के अनुसार पूजा के लिए चारो दिशा के चारो कोनो में पूजा करने के लिए तीन तीन महीने में एक कोना में पूजा होती है ये सूर्य कीस राशी में विराजमान होगा उसी अनुसार vastu पूजा करे